भारतीय वायुसेना में मिग-21 Bison के अंतिम दो एक्टिव स्क्वाड्रनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया जाएगा।
MiG-21 Retirement News: मुझे मिग-21 के नाम से जानते हैं, मैंने भारत के कई युद्धों में भाग लिया, लेकिन अब मैं बूढ़ा हो गया हूं और मेरी तकनीक पुरानी हो गई है। अपने अंतिम समय में, मैं आपको अपने 62 साल के सफर के बारे में बताना चाहता हूं। (MiG-21 bids farewell to the Indian Air Force news in hindi)
बात 1962 की है, जब भारत-चीन युद्ध हुआ था। पाकिस्तान को अमेरिका से F-104 स्टार फाइटर्स मिले थे, खतरा बरकरार था। हिंदुस्तान को सुपरसोनिक फाइटर्स की जरूरत थी, जो आवाज की गति (332 मीटर प्रति सेकेंड) से तेज उड़ सकें। तब सोवियत यूनियन (अब के रूस) ने 1963 में मेरा पहला बेड़ा भारत भेजा था।

जनवरी 1963 में मैं टुकड़ों में समंदर के रास्ते बॉम्बे पहुंचा। वहां सोवियत इंजीनियर्स ने मुझे असेम्बल किया। अप्रैल 1963 में आगरा के रास्ते चंडीगढ़ लाया गया। तब के विंग कमांडर दिलबाग सिंह मुझे ताशकंद से उड़ाकर चंडीगढ़ ला रहे थे तो मेरी रफ्तार से साउंड बैरियर टूट गया था।

मेरा परमानेंट स्टेशन तो हिंडन में बनना था, लेकिन उस बेस पर तब काम चल रहा था। चंडीगढ़ को टेम्परेरी बेस के तौर पर चुना गया, 6 महीने के लिए, लेकिन मैंने यहां 2 साल के लिए पैर जमा लिए। दिलबाग सिंह की कमांड में 2 मार्च 1963 को नंबर 28 स्क्वाड्रन का गठन हुआ, जिसे ‘फर्स्ट सुपरसोनिक्स’ कहते थे, इसमें हम 6 मिग-21 शामिल थे।

मेरा पहला हादसा भी चंडीगढ़ में हुआ। रिपब्लिक डे परेड की प्रैक्टिस करते हुए हम (दो मिग-21) हवा में टकरा गए। शुक्र है कि दोनों पायलट- स्कवाड्रन लीडर एमएसटी वॉलेन और फ्लाइट लेफ्टिनेंट एके मुखर्जी बच गए। मैंने खुद को साबित किया। 1965 की जंग में और फिर 1971 में भी, जब मेरी 8 स्क्वाड्रन्स तैयार थीं। 60 के आखिरी दशक में चंडीगढ़ में नंबर 45 स्क्वाड्रन मेरे पायलट्स के लिए प्राइमरी ट्रेनिंग यूनिट बना।
1968 से शुरुआत करके एयर कमोडोर सुरेंद्र सिंह त्यागी ने 4306 घंटे की ट्रेनिंग की। 1986 में श्रीनगर शिफ्ट होने के पहले नंबर 51 स्क्वाड्रन 1 फरवरी 1985 को चंडीगढ़ में ही बनी थी। मेरी आखिरी एक्टिव यूनिट नंबर 23 स्क्वाड्रन– पैंथर्स की ट्रेनिंग यहीं हुई।

कारगिल युद्ध में चंडीगढ़ ट्रेंड स्क्वाड्रंस ने एयर डिफेंस और स्ट्राइक में शानदार भूमिका निभाई। पाक F-16 को अपने मिग-21 बायसन से मार गिराने वाले विंग कमांडर अभिनंदन उसी स्क्वाड्रन से हैं।
इतने लंबे सफर में हादसे भी हुए, मुझे उड़ता ताबूत कहा गया। जालंधर में 2002 में हुए एक हादसे में 8 सिविलियन मारे गए। मेरी उड़ानें रोक दी गईं और संसद में आवाज बुलंद हुई कि मुझे धीरे-धीरे बाहर कर दिया जाए।
MiG-21 की आखिरी उड़ान
भारतीय वायुसेना के मिग-21 विमानों पर 26 सितंबर को नंबर प्लेट लगाई जाएगी।इसके साथ ही छह दशकों से भी अधिक समय तक भारतीय वायुसेना की सेवा करने वाले इन विमानों की विदाई हो जाएगी। 26 सितंबर, 2025 को मिग-21 चंडीगढ़ के आसमान में आखिरी बार उड़ान भरेगा। 62 साल की लंबी सेवा के बाद, मिग-21 इतिहास का हिस्सा बन जाएगा। भारतीय वायुसेना में मिग-21 Bison के अंतिम दो एक्टिव स्क्वाड्रनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया जाएगा।

400 से ज्यादा क्रैश, 200 पायलट मारे गए... कभी ‘उड़ता ताबूत’ और ‘विडो मेकर’ कहा गया।
रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 400 से ज्यादा मिग-21 विमान क्रैश हुए हैं। इसमें 200 से ज्यादा पायलट मारे गए गए हैं। इसी वजह से फाइटर प्लेन को ‘उड़ता ताबूत’ और ‘विडो मेकर’ कहा जाता है।
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