विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘उन्हें (ग्लोबल साउथ को) आर्थिक परिवर्तन का पूरा लाभ नहीं मिल रहा और वे अपारदर्शी पहलों के ...
New Delhi: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ‘‘पहले से अधिक विविध और अधिक लोकतांत्रिक’’ पुनः वैश्वीकरण की जोरदार वकालत करते हुए रविवार को कहा कि ‘ग्लोबल साउथ’ अब कुछेक आपूर्तिकर्ताओं की दया पर निर्भर नहीं रह सकता।
जयशंकर ने यहां भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) द्वारा आयोजित बी20 शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि ‘ग्लोबल साउथ’ उत्पादक बनने के बजाय काफी हद तक केवल उपभोक्ता बनकर रह गया है और वह आर्थिक बदलाव का पूरा लाभ नहीं उठा सका।
विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘उन्हें (ग्लोबल साउथ को) आर्थिक परिवर्तन का पूरा लाभ नहीं मिल रहा और वे अपारदर्शी पहलों के कारण अव्यवहार्य ऋणों से आमतौर पर घिर जाते हैं। यह संकट धीरे-धीरे सामने आ रहा था, लेकिन ऋण, कोविड-19 और संघर्ष के कई झटकों ने इसकी गति को तेज कर दिया।’’ उन्होंने ‘उभरते विश्व 2.0 में ग्लोबल साउथ की भूमिका’ (रोल ऑफ ग्लोबल साउथ इन इमर्जिंग वर्ल्ड 2.0) पर आयोजित सत्र को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘इसके परिणामस्वरूप अब पहले से अधिक विविध, अधिक लोकतांत्रित पुन: वैश्वीकरण को हासिल करने की कोशिश की जा रही है, जहां केवल उपभोक्ता ही नहीं, बल्कि उत्पादन के कई केंद्र होंगे। ऐेसे में कारोबार अहम अंतर ला सकता है।’’
जयशंकर ने कहा कि जी20 का मुख्य उद्देश्य आर्थिक वृद्धि और विकास को बढ़ावा देना है और अगर ऋण एवं वित्त, सतत विकास, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्रवाई, खाद्य सुरक्षा और महिला नीत विकास जैसे क्षेत्रों में ‘ग्लोबल साउथ’ की महत्वपूर्ण चिंताओं को दूर नहीं किया गया, तो इस दिशा में आगे बढ़ना संभव नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम अब उन कुछ आपूर्तिकर्ताओं की दया पर निर्भर नहीं रह सकते, जिनकी व्यवहार्यता अप्रत्याशित झटकों के कारण सवालों में घिर सकती है। कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान स्वास्थ्य के मामले में यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया और यह अन्य चीजों पर भी काफी हद तक लागू होता है।’’ जयशंकर ने कहा कि अधिक लचीली और विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखला विकसित करने की बाध्यता वास्तव में बहुत जरूरी है।
उन्होंने कहा कि डिजिटल क्षेत्र विश्वास एवं पारदर्शिता संबंधी चिंताओं से घिरा है और ‘‘पिछले कुछ वर्षों की अस्थिरता ने हमें रणनीतिक स्वायत्तता का महत्व समझाया है।’’ विदेश मंत्री ने कहा कि अधिक न्यायसंगत, समान और सहभागी वैश्विक व्यवस्था तभी स्थापित होगी, जब ‘ग्लोबल साउथ’ के अनुरूप निवेश, व्यापार और प्रौद्योगिकी निर्णय लिए जाएंगे।