बीस-वर्षीया कॉलेज छात्रा प्रतीक्षा मार्चर कहती हैं, ‘‘मैं पुर्तगाली नहीं जानती, न ही मैं लैटिन पढ़ सकती हूं। (लेकिन) मुझे अपने पूर्वजों के...
अगरतला : पूर्वोत्तर में बसे पुर्तगालियों के वंशज 25 वर्षीय विक्टर सागर डिसूजा अपनी जड़ों की तलाश में पूर्वजों की धरती पर जाना चाहते हैं। डिसूजा का जन्म अगरतला के बाहरी इलाके में मरियमनगर में 'पुर्तगाली' चर्च के पास हुआ था, जहां उनके पूर्वजों को करीब 500 साल पहले बसाया गया था।
त्रिपुरा स्थित `छोटे पुर्तगाल’ के अधिकेंद्र में स्थित चर्च के पास एक खुदरा दुकान चलाने वाले डिसूजा ने कहा, “मैंने अपने दादा और अन्य लोगों से कई कहानियां सुनीं है कि मेरे पूर्वज त्रिपुरा कैसे आए और वे यहां कैसे बस गए, लेकिन समय बीतने के साथ हमारी परंपरा, संस्कृति, खान-पान बदल गया है ... लेकिन हम खुद को अब भी पुर्तगालियों के वंशज के रूप में पहचाना जाना चाहते हैं।’’
त्रिपुरा के `पुर्तगालियों' को तत्कालीन माणिक्य राजाओं द्वारा भाड़े के सैनिकों के रूप में किराये पर लिया गया था ताकि त्रिपुरा रियासत को आस-पास के लुटेरों द्वारा बार-बार किये गये हमले से बचाने में मदद मिल सके।
वास्को डी गामा के बेड़े को कालीकट जाने का रास्ता मिल जाने के बाद, पुर्तगाली व्यापारियों और समुद्री लुटेरों ने भी बंगाल के तट के आसपास अपना रास्ता खोज लिया और चटगांव और फरीदपुर (वर्तमान बांग्लादेश में) जैसे द्वीपों में बस गए।.
त्रिपुरा में पुर्तगाली बस्तियों का अध्ययन करने वाले लेखक शेखर दत्त ने कहा, “त्रिपुरा के शासकों ने चटगांव में बसे कुछ लोगों को शाही सेना में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। उनमें से कई ने गनर और राइफलमैन के रूप में काम किया और उन्हें मुआवजे के तौर पर भूमि बंदोबस्त किया गया।’’
उत्तर-पूर्व भारत में पुर्तगाली बस्तियों का अध्ययन करने वाले शिक्षाविद और यूपीएससी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. डेविड रीड सिम्लिह ने लिखा है कि राजा अमर माणिक्य बहादुर (1577-1586) ने चटगांव और नोआखली (अब बांग्लादेश) में अपनी सेना में भाड़े के पुर्तगाली सैनिकों को शामिल किया। बाद में उन्हें त्रिपुरा की तत्कालीन राजधानी रंगमती (बाद में उदयपुर नाम दिया गया) में बसाया गया। वर्ष 1760 में महाराजा कृष्ण माणिक्य द्वारा अपनी राजधानी अगरतला स्थानांतरित करने के बाद उन्हें भी मरियमनगर में फिर से बसाया गया।
त्रिपुरा के अंतिम शासक के पुत्र प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा ने कहा, ‘‘वे (पुर्तगाली भाड़े के सैनिक) अपने साथ सामरिक युद्ध कौशल का काफी ज्ञान लेकर आए, क्योंकि वे आग्नेयास्त्रों के इस्तेमाल में पारंगत थे।’’
उन्हें दी गई कर-मुक्त भूमि 'मरियमनगर' या मरियम की भूमि बन गई। हालांकि इनमें से कई लोगों ने धीरे-धीरे खेती करना शुरू कर दिया, लेकिन वे उन्हें दी गई जमीन पर कब्जा नहीं कर सके।
समुदाय के एक कॉलेज शिक्षक बिप्लब लैगार्डो ने कहा, ‘‘राजा अमर माणिक्य ने कॉक्सबाजार क्षेत्र से केवल 22 गनर लगाए थे, लेकिन वे खानाबदोश मोग डाकुओं को हराने के लिए पर्याप्त थे, क्योंकि वे अपने साथ अत्याधुनिक हथियार लेकर आए थे।
उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘राजा ने हमें विशाल भूमि के साथ एक प्रतिष्ठित ठिकाना दिया और हमें यहां के शासकों द्वारा नियमित रूप से उज्जयंत महल में आमंत्रित किया जाता था।’’ लैगार्डो ने कहा कि त्रिपुरा में 1905 में हैजे की महामारी फैली थी, जिसके कारण समुदाय के कई लोग असम की ओर पलायन कर गए थे।
हालांकि, पलायन को रोकने के लिए, तत्कालीन राजा राधाकिशोर माणिक्य ने बंगाली महिलाओं और पुर्तगाली समुदाय के पुरुषों के बीच कई अंतर-जातीय विवाह कराये और उन्हें कई तरह से प्रोत्साहित किया, जिसके परिणामस्वरूप आपस में मिलना-जुलना शुरू हो गया।
लैगार्डो ने कहा कि उन्होंने समुदाय के पुश्तैनी इतिहास को एक साथ जोड़ने की बहुत कोशिश की है।
बीस-वर्षीया कॉलेज छात्रा प्रतीक्षा मार्चर कहती हैं, ‘‘मैं पुर्तगाली नहीं जानती, न ही मैं लैटिन पढ़ सकती हूं। (लेकिन) मुझे अपने पूर्वजों के बारे में और जानना और भविष्य में पुर्तगाली सीखना अच्छा लगेगा।”
डिसूजा ने कहा, ‘‘हालांकि हम ईसाई हैं, लेकिन हमारी महिलाएं माथे पर सिंदूर लगाती हैं और हर साल दुर्गा पूजा का आयोजन करती हैं। मेरी बहन ने यहां एक ब्राह्मण से शादी की है। स्थानीय बंगाली समुदाय के साथ इस समुदाय का पूर्ण मेलजोल है और हमें कोई दिक्कत नहीं है।”