पीठ ने अपने आदेश में कहा कि याचिका आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर बेकार के सवाल पूछने के अलावा कुछ नहीं है।
मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने 2016 में नोटबंदी के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अधिकारियों के कथित रूप से गलत कार्यों में शामिल होने के आरोप वाली याचिका को खारिज कर दिया है। इसके साथ उच्च न्यायालय ने कहा कि आरबीआई देश की अर्थव्यवस्था को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और अदालतों को मौद्रिक नियामक ढांचे में हस्तक्षेप से बचना चाहिए।
न्यायाधीश ए एस गडकरी और न्यायाधीश शर्मिला देशमुख की खंडपीठ ने आठ सितंबर को मनोरंजन रॉय की तरफ से दायर याचिका खारिज कर दी। याचिका में 500 और 1,000 रुपये के नोट को चलन से हटाने के दौरान आरबीआई के कुछ अधिकारियों के कथित रूप से गलत गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाते हुए मामले की स्वतंत्र जांच का आग्रह किया गया था।
रॉय ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि आरबीआई के कुछ अधिकारियों ने उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया और नोटबंदी के दौरान कुछ लाभार्थियों को उनके बेहिसाब पुराने नोट को बदलने में मदद की।
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि याचिका आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर बेकार के सवाल पूछने के अलावा कुछ नहीं है। नोटबंदी को घोटाला समझ रहे याचिकाकर्ता उसी आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर जांच का आग्रह कर रहा है।
अदालत ने कहा, ‘‘वैध मुद्रा जारी करना आरबीआई का सांविधिक अधिकार है... और उसे आधारहीन बातों के आधार पर सवालों के घेरे में खड़ा नहीं किया जा सकता।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘नोटबंदी को लेकर अधिसूचना 2016 में जारी की गयी और यह नीतिगत निर्णय था।’’ अदालत ने कहा, ‘‘... यह धारणा है कि जो नीतिगत निर्णय लिया गया है, वह उपयुक्त है और जनता के हित में है...।’’
पीठ ने कहा, ‘‘इस बात को लेकर कोई विवाद नहीं है कि आरबीआई हमारे देश की अर्थव्यवस्था को आकार और गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अदालतों को मौद्रिक नियामकीय ढांचे में तबतक हस्तक्षेप से बचना चाहिए जब तक कि गड़बड़ी के पुख्ता साक्ष्य नहीं हैं और जांच की आवश्यकता है।’’