देश के सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थान एम्स में साइबर हमला कर 4 करोड़ से ज्यादा मरीजों से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकरी चुरा ली गई। यह मामला आम लोगों ...
पटना , (संवाददाता) : जदयू के पूर्व विधायक राहुल शर्मा एवं पार्टी प्रवक्ता श्रीमती अंजुम आरा ने शनिवार को पार्टी कार्यालय में प्रेस कांफ्रेंस करते हुए कहा कि 23 नवंबर को एक खबर आई थी कि देश के सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थान एम्स में साइबर हमला कर 4 करोड़ से ज्यादा मरीजों से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकरी चुरा ली गई। यह मामला आम लोगों के साथ ही देश की सुरक्षा से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकरी के चोरी का भी है पर केंद्र सरकार आज दस दिन बीत जाने के बाद भी हाथ पे हाथ रखे बैठी है ।
प्रवक्ताओं ने कहा कि देश में 1 जुलाई 2017 से लोगों से आधार कार्ड को पैन कार्ड से लिंक करने के लिए बाध्य किया गया और उसके बाद से साइबर क्राइम में अप्रत्याशित वृद्धि हुयी और 2017 में जहाँ महज 53 हजार केस हुए थे, वहीँ 2021 में बढ़ कर 14 लाख से ऊपर पहुंच गया। लोकसभा में गृहराज्य मंत्री ने स्वयं यह आंकड़ा दिया। मोदी सरकार द्वारा साइबर क्राइम को रोकने की नाकाम कोशिश के कारण ही भारत दुनिया के सबसे ज्यादा साइबर अटैक वाले देशो में कभी दूसरे तो कभी तीसरे स्थान पर रहा रहा है। प्रवक्ताओं ने कहा कि 23 सितंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में आधार को स्वैच्छिक करार देते हुए कहा था कि सरकार किसी योजना अथवा सेवा लाभ के लिए नागरिकों पर आधार दिखाने के लिए दबाव नहीं डाल सकती है, ना ही उन्हें किसी भी तरह का लाभ देने से मना कर सकती है। इसके बावजूद 2018 में यूआईडीआई के पूर्व चेयरमैन आरएस शर्मा ने ट्वीटर पर अपना आधार नंबर शेयर करते हुए डाटा चोरी की चुनौती दी थी, जिसके 24 घंटे के भीतर हैकर्स ने उनका सारा डाटा उड़ा लिया। इसके बाद यूआईडीआई को ट्वीट करते हुए आधार नंबर शेयर नहीं करने की सलाह तक देनी पड़ी। 2018 में 200 सरकारी वेबसाइट से आधार डाटा लीक हो गया था। सेंटर आॅफ इंटरनेट एंड सोसाइटी के मुताबिक 13 करोड़ लोगों का आधार नंबर और दूसरी गोपनीय डाटा भी इसी तरह लीक हो चुकी है।
प्रवक्ताओं ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार ने आधार कार्ड को लिंक करने के पक्ष में तर्क रखते हुए कहा था कि प्राइवेसी मूलभूत अधिकार नहीं है, लेकिन अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के तर्क को गलत बताते हुए फैसला सुनाया कि प्राइवेसी भारतीय संविधान के अंतर्गत मूलभूत अधिकार है और डाटा सुरक्षा को लेकर जल्द से जल्द कानून बनाने की भी सलाह दी थी। आज देश के लगभग सभी लोगों का आधार कार्ड उनके पैन कार्ड, बैंक अकाउंट, मोबाइल नम्बर, जीवन बीमा, पेंशन योजना समेत अन्य तमाम दस्तावेज़ों से लिंक हो चुका है। आधार डेटा के चोरी होने पर एक झटके में सभी के बैंक, फ़ोन, योजनाओं के लाभ से सम्बंधित जानकारियों का इस्तेमाल डेटा चोर आसानी से एक झटके में लोगों के एकाउंट से पैसे उड़ा सकते हैं ।
प्रवक्ताओं ने कहा कि एक आंकड़े के अनुसार डेटा चोरी के कारण वर्ष 2019 में देश की अर्थव्यवस्था को 1.25 लाख करोड़ रुपए का घाटा हुआ है जो टू जी, थ्री जी, कोल गेट जैसे घोटालों के बराबर है। इस तरह की डेटा चोरी से राष्ट्रीय सुरक्षा को भी नुकसान है। एम्स जैसे संस्थान में देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, सभी मंत्री, सेनाध्यक्ष और सुरक्षा एजेन्सी के अधिकारियों का इलाज होता है और वहाँ इनसे सम्बंधित तमाम सूचनाएं होती हैं । ज्ञात है कि चीन जैसे तमाम देशों की सेना में साइबर सिक्यरिटी से सम्बंधित सुरक्षा दस्ता है, लेकिन हिंदुस्तान में नहीं है। देश में साइबर अपील ट्राइब्यूनल के जज का पद वर्ष 2012 से ही खाली है, यही नहीं ट्राइब्यूनल के वेबसाइट को भी बंद कर दिया गया है। 2018 में दिल्ली में पहला साइबर क्राइम कोर्ट स्थापित तो किया गया लेकिन इसकी सुनवाई सामान्य कोर्ट में ही हो रही है। एम्स के डेटा चोरी पर सरकार की उदासीनता से यही ज़ाहिर होता है कि सरकार देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रही है।
प्रवक्ताओं ने सरकार से साइबर क्राइम और उसे रोकने के लिए किए गए प्रयासों एवं भविष्य की योजनाओं पर एक श्वेत पत्र जारी करने की माँग की है।