गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में मोहन को दोषी ठहराया गया था।
सहरसा/पटना : उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व सांसद आनंद मोहन को 15 साल बाद बृहस्पतिवार को सुबह सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया। गैंगस्टर से नेता बने मोहन की रिहाई ‘जेल सजा छूट आदेश’ के तहत हुई है। हाल में बिहार सरकार ने जेल नियमावली में बदलाव किया था, जिससे मोहन समेत 27 अभियुक्तों की समयपूर्व रिहाई का मार्ग प्रशस्त हुआ।
हत्या के मामले में दोषी
गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में मोहन को दोषी ठहराया गया था। सन् 1994 में मुजफ्फरपुर के गैंगस्टर छोटन शुक्ला की शवयात्रा के दौरान आईएएस अधिकारी कृष्णैया की हत्या कर दी गई थी। अक्टूबर 2007 में एक स्थानीय अदालत ने मोहन को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन दिसंबर 2008 में पटना उच्च न्यायालय ने मृत्युदंड को उम्रकैद में बदल दिया था। मोहन ने निचली अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
नीतीश कुमार नीत बिहार सरकार ने 10 अप्रैल को बिहार जेल नियमावली, 2012 में संशोधन किया था और उस उपबंध को हटा दिया था, जिसमें कहा गया था कि ‘ड्यूटी पर कार्यरत लोकसेवक की हत्या’ के दोषी को उसकी जेल की सजा में माफी/छूट नहीं दी जा सकती।
आलोचकों का कहना है कि मोहन की रिहाई में मदद के लिए ऐसा किया गया।
सरकार के इस कदम से राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया। भाजपा सांसद एवं पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के समर्थन से सत्ता में बने रहने के लिए कानून की बलि चढ़ा दी।
दिवंगत आईएएस अधिकारी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने आनंद मोहन को रिहा करने के बिहार सरकार के फैसले पर निराशा जाहिर की है। मोहन ने उनकी रिहाई का कृष्णैया की पत्नी और आईएएस ऑफिसर्स एसोसिएशन द्वारा किये जा रहे विरोध पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।
उसने सोमवार को सहरसा के लिए रवााना होने से पहले पटना में संवाददाताओं से कहा था, ‘‘ चाहे कृष्णैया की पत्नी हों या आईएएस ऑफिसर्स एसोसिएशन, मैं सभी लोगों को प्रणाम करता हूं। इस समय मैं कुछ भी नहीं कहना चाहता। जब मैं बाहर आऊंगा, तब मुझे जो भी कहना होगा, मैं कहूंगा।’’
अपने बेटे एवं राजद विधायक चेतन आनंद की सगाई में शामिल होने के लिए पेरोल पर बिहार की राजधानी पटना पहुंचे आनंद मोहन को उसकी लंबित रिहाई की खबर मिली।
आनंद मोहन की रिहाई को बिहार के सत्तारूढ़ महागठबंधन द्वारा राजपूतों के बीच अपना समर्थन मजबूत करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। पारंपरिक रूप से राजपूत भाजपा के मतदाता समझे जाते हैं और पिछले चुनावों में भारी संख्या में राजपूतों ने भाजपा के पक्ष में वोट डाला है। ऐसा लगता है कि मोहन की रिहाई के मुद्दे पर भाजपा के अंदर ही विभाजन हो गया है।
सुशील कुमार मोदी और अमित मालवीय जैसे पार्टी नेताओं ने मोहन को रिहा करने के आदेश की जबर्दस्त आलोचना की है जबकि पार्टी के ऊंची जाति के नेताओं की भिन्न राय सामने आयी है। ऊंची जाति के नेताओं ने मोहन की रिहाई का खुलकर विरोध तो नहीं किया है लेकिन यह जरूर कहा है कि इससे अन्य अपराधियों को मदद मिलेगी।