बच्ची को अपनी मां का प्यार और स्नेह पाने के उसके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.
Punjab-Haryana High Court News: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि नाबालिग बच्चों की कस्टडी उनकी मां के पास होना उनके हित और कल्याण में है। स्तनपान करने वाली बच्ची को मां का प्यार और देखभाल पाने के उसके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। जस्टिस कुलदीप तिवारी ने एक महिला के ससुराल वालों को उसकी आठ नहीने और दो साल की बेटियों की अंतरिम कस्टडी उसे सौंपने का निर्देश देते हुए यह टिप्पणी की।
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता की नाबालिग बेटी, जो लगभग आठ महीने की है, पोषण के लिए पूरी तरह से अपनी मां के स्तनपान पर निर्भर है और इस तरह उसे अपनी मां का प्यार और स्नेह पाने के उसके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता, जो उसकी देखभाल करने में पूरी तरह सक्षम है। यहां तक कि आठ महीने के बच्चे की शारीरिक और जैविक जरूरतें भी उसकी मां के साथ रहने पर निर्भर करती हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसा कुछ भी रिकार्ड में नहीं है, जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि नाबालिग बच्चों की मां के पास कस्टडी उनके कल्याण के खिलाफ है। नाबालिग बच्चों की कम उम्र को ध्यान में रखते हुए इस मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों के साथ कोर्ट का विचार है कि नाबालिग बच्चों की हिरासत उनकी जैविक मां याचिकाकर्ता के पास होना उनके हित और कल्याण में है। हाई कोर्ट ने यह टिप्पणियां करनाल निवासी एक मां की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए की।
वह अपनी आठ महीने और ढाई साल की नाबालिग बेटियों को अपने ससुराल वालों की कथित अवैध हिरासत से मुक्त करने की मांग कर रही थी। याचिका में आरोप लगाया गया किच था कि महिला ने अपने पति की फिर मृत्यु के बाद अपने वैवाहिक घर शेल्या को छोड़ दिया क्योंकि उसके ससुर ने ऐसा शोषणकारी और यौन रूप से अपमानजनक माहौल बनाया। हालांकि उसे अपनी बेटियों को साथ ले जाने की अनुमति नहीं थी। सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि बेटियां कम उम्र की हैं, जिनका औच कल्याण उनकी मां के हाथ में है।
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