हिंदू कानून के अनुसार अवैध विवाह में पुरुष और महिला को पति-पत्नी का दर्जा प्राप्त नहीं होता है।
-सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अवैध विवाह से हुए बच्चे माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सा पाने के हकदार.
-भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 3 जजों की पीठ ने सुनाया फैसला.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक बड़े फैसले में कहा कि 'अवैध विवाह' से पैदा हुए बच्चों को अपने माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि नाजायज विवाह के बच्चे हिंदू कानून के तहत अपने माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकते हैं। इस तरह अब हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 16(3) का दायरा बढ़ाया जाएगा.
हिंदू कानून के अनुसार अवैध विवाह में पुरुष और महिला को पति-पत्नी का दर्जा प्राप्त नहीं होता है। अवैध विवाह में विवाह को रद्द करने के लिए किसी डिक्री की आवश्यकता नहीं होती है। अवैध विवाह एक ऐसा विवाह है जो शुरू से ही शून्य होता है जैसे कि वह विवाह कभी अस्तित्व में ही नहीं था।
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि अवैध या शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चे अपने मृत माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सा पाने के हकदार हैं. हालांकि ऐसे बच्चे अपने माता-पिता के अलावा किसी अन्य तरह की संपत्ति के हकदार नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि यह फैसला केवल हिंदू मिताक्षरा कानून द्वारा शासित हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्तियों पर लागू है.
शीर्ष अदालत का फैसला 2011 की एक याचिका पर आया था जो इस जटिल कानूनी मुद्दे से निपट रही थी कि क्या शून्य/अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे हिंदू कानून के तहत अपने माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी के हकदार हैं।
सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सी.जे.आई कहा कि उनकी पीठ ने निर्णय दिया कि पति-पत्नी के बच्चे हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 16 की उपधारा 1 के तहत कानून की नजर में वैध हैं। गैरकानूनी विवाह से पैदा हुए बच्चे उपधारा 2 के तहत वैध हैं। उन्हें अपने माता-पिता की संपत्ति में अधिकार होगा.