मुर्मू ने कहा, ‘‘हमें प्रकृति से सम्मान के साथ व्यवहार करना सीखना, बल्कि फिर से सीखना होगा। यह न केवल हमारा नैतिक दायित्व है, बल्कि हमारे अपने ...
New Delhi : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को कहा कि जलवायु परिवर्तन दरवाजे पर दस्तक दे रहा है और गरीब देशों के लोग पर्यावरण के क्षरण के लिए ‘‘भारी कीमत’’ चुकाने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि समाज को अब न्याय के पर्यावरणीय आयाम पर भी विचार करना चाहिए।
मानवाधिकार दिवस के मौके पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा यहां आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुर्मू ने यह भी अपील की कि मनुष्यों को प्रकृति तथा जैव विविधता से प्रतिष्ठा और सम्मान के साथ व्यवहार करना भी सीखना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं पूछती हूं कि अगर हमारे आसपास के जानवर और पेड़ बोल सकते तो वे हमें क्या बताते। हमारी नदियां मानव इतिहास के बारे में क्या कहतीं और हमारे मवेशी मानवाधिकार के विषय पर क्या कहते। हमने लंबे वक्त तक उनके अधिकारों को कुचला है और अब परिणाम हमारे सामने है।’’
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘जिस तरह से मानवाधिकारों की अवधारणा समाज को प्रत्येक मनुष्य को हमसे अलग न मानने पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है, उसी तरह हमें सभी प्राणियों और उनके आवास स्थान से सम्मान के साथ व्यवहार करना चाहिए।’’
मुर्मू ने कहा, ‘‘हमें प्रकृति से सम्मान के साथ व्यवहार करना सीखना, बल्कि फिर से सीखना होगा। यह न केवल हमारा नैतिक दायित्व है, बल्कि हमारे अपने अस्तित्व के लिए भी आवश्यक है।’’
संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1948 में जारी किए गए मानवाधिकार सार्वभौमिक घोषणापत्र (यूडीएचआर) की याद में मानवाधिकार दिवस 1950 से विश्वभर में 10 दिसंबर को मनाया जाता है। मुर्मू ने कहा कि इस साल मानवाधिकार दिवस की थीम ‘सभी के लिए सम्मान, स्वतंत्रता और न्याय’ है। उन्होंने कहा कि यह भारत के संविधान की प्रस्तावना में व्यक्त आदर्शों के करीब है।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘मैंने पहले भी कहा है कि हमें न्याय की धारणा का विस्तार करने का प्रयास करना चाहिए। पिछले कुछ वर्ष में दुनिया को असामान्य मौसम प्रवृत्तियों के कारण कई प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। गरीब देशों में लोग हमारे पर्यावरण के क्षरण के लिए भारी कीमत चुकाने जा रहे हैं। हमें अब न्याय के पर्यावरणीय आयाम पर भी विचार करना चाहिए।’’
मुर्मू ने इस बात पर भी जोर दिया कि ‘‘संवदेनशीलता और सहानुभूति’’ विकसित करना मानवाधिकारों की रक्षा के लिए अहम है।