आंकड़ों के मुताबिक देशभर में कुल 40 फीसदी सांसदों और 44 फीसदी विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं.
नई दिल्ली - सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया गया है कि वह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए नेताओं और सांसदों को आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करे। रिपोर्ट में कहा गया है कि सांसदों को अन्य नागरिकों की तुलना में कानून का अधिक पालन करना चाहिए। आपको बता दें कि यह रिपोर्ट वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने दाखिल की है।
देश भर के सांसदों और विधायकों के खिलाफ विभिन्न उच्च न्यायालयों में 1377 मामले लंबित हैं, जिसके साथ उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है। देश भर के वर्तमान और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों में से एक चौथाई अकेले यूपी में हैं। 546 मामलों के साथ बिहार इस सूची में दूसरे स्थान पर है।
ये आंकड़े दागी प्रतिनिधियों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त न्याय मित्र द्वारा सौंपी गई 19वीं रिपोर्ट के हैं। वरिष्ठ वकील और एमिकस क्यूरी विजय हंसारिया ने इस रिपोर्ट में सिफारिश की है कि आरोपी नेताओं को 6 साल नहीं बल्कि जीवन भर चुनाव लड़ने से रोका जाना चाहिए. दरअसल, 2016 में बीजेपी नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दायर जनहित याचिका के बाद से सुप्रीम कोर्ट इन मामलों के जल्द निपटारे की निगरानी कर रहा है.
आंकड़ों के मुताबिक देशभर में कुल 40 फीसदी सांसदों और 44 फीसदी विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. हत्या और यौन शोषण के मामले 28 प्रतिशत दर्ज किए गए हैं. आंकड़ों की बात करें तो पंजाब में लंबित मामलों की संख्या 91 है और 5 साल में इनकी संख्या 16 है.
इसके साथ ही अन्य राज्यों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में 1377, बिहार में 546, महाराष्ट्र में 482, हिमाचल में 70 और हरियाणा में लंबित मामलों की संख्या 48 है. एमिकस क्यूरी ने रिपोर्ट में कहा, 'राजनेता चुनाव जीतने के बाद कानून भी बनाते हैं. ऐसी स्थिति में इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि किसी आपराधिक मामले में अयोग्यता की अवधि समाप्त होने के बाद वे संबंधित कानून को निष्प्रभावी करने का प्रयास कर सकते हैं।