समलैंगिक विवाह से जुड़ी याचिकाओं में उठाये गये मुद्दे पर संसद के पास विधायी शक्ति है : न्यायालय

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समलैंगिक विवाह से जुड़ी याचिकाओं में उठाये गये मुद्दे पर संसद के पास विधायी शक्ति है : न्यायालय
Published : Apr 26, 2023, 10:52 am IST
Updated : Apr 26, 2023, 10:52 am IST
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Parliament has legislative power on issues raised in petitions related to same-sex marriage: Supreme Court
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याचिकाओं में उठाये गये मुद्दों पर संसद के पास अविवादित रूप से विधायी शक्ति है।.

New Delhi: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं में उठाये गये मुद्दों पर संसद के पास अविवादित रूप से विधायी शक्ति है। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ गोद लेने, उत्तराधिकार, पेंशन से जुड़े कानून और ग्रेच्युटी आदि विषयों पर कई कानूनी प्रश्नों का सामना कर रही है।

न्यायालय ने कहा कि यदि समलैंगिक विवाह की अनुमति दी जाती है तो इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए न्यायिक व्याख्या विशेष विवाह अधिनियम, 1954 तक सीमित नहीं रहेगी और पर्सनल लॉ भी इसके दायरे में आ जाएगा।

संविधान पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति हिमा कोहली, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा, न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एस आर भट भी शामिल हैं। न्यायालय ने कहा, ‘‘अब हमारे समक्ष यह सवाल है कि यदि यह शक्ति विशेष रूप से संसद को प्रदान की गई है तो न्यायालय असल में अपने क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल कहां करेगा। वे कौन सी खाली जगह हैं, जहां न्यायालय अपनी शक्तियों का उपयोग करेगी।’’

पीठ ने कहा कि इससे इनकार नहीं किया जा रहा कि 1954 के अधिनियम और विभिन्न धर्मों के पर्सनल लॉ के बीच संबंध है। न्यायालय ने कहा, ‘‘इसलिए, आप विशेष विवाह अधिनियम तक सीमित नहीं रह सकते और इसे इससे आगे जाना होगा।’’

सुनवाई के चौथे दिन याचिकाकर्ताओं की ओर से न्यायालय में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिये जाने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि यदि एलजीबीटीक्यूआईए समुदाय को यह मूल अधिकार नहीं दिया जाता है तो देश की जीडीपी का सात प्रतिशत प्रभावित हो जाएगा।

उन्होंने कहा कि समलैंगिक लोगों के विवाह का यदि यहां पंजीकरण नहीं होगा तो वे बेहतर अधिकारियों के लिए दूसरे देश रहने चले जाएंगे। उन्होंने दलील दी कि यह ‘समलैंगिक लोगों का प्रतिभा पलायन’ होगा।

पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुईं वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी से कहा कि मान लीजिए कि यदि शीर्ष न्यायालय ने विशेष विवाह अधिनियम की धारा चार में पुरुष और महिला शब्द की जगह ‘जीवनसाथी’ शब्द कर दिया या ‘व्यक्ति’ शब्द रख दिया, तो सवाल यह उठता है कि ‘‘क्या यह आज यहीं रुक जाएगा।’’

पीठ ने कहा, ‘‘आप इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते कि संसद के पास इस मुद्दे पर विधायी शक्ति है, जो समवर्ती सूची की प्रविष्टि 5 है।’’

प्रधान न्यायाधीश ने 1997 के विशाखा अधिनियम का जिक्र करते हुए कहा कि एक कानून बनाने की दिशा में यह एक अनुकरणीय उदाहरण है, लेकिन ‘‘सवाल यह है कि अदालत को कितना आगे तक जाना होगा।’’ 

Location: India, Delhi, New Delhi

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