जनहित याचिका में कहा गया कि आरटीई कानून की धारा 1(4) और 1(5) के चलते और मातृभाषा में समान पाठ्यक्रम नहीं होने के कारण अनदेखी की स्थिति बनी हुई है।
New Delhi: दिल्ली उच्च न्यायालय ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली एक याचिका में दिल्ली सरकार और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) को पक्ष बनाने के लिए एक याचिकाकर्ता को शुक्रवार तक का समय दिया।.
कानून के कुछ प्रावधानों के कथित रूप से मनमाना और तर्कहीन होने का हवाला देते हुए याचिका दाखिल की गयी है और इसमें मांग की गयी है कि देशभर में पहली से आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों के लिए समान पाठ्यक्रम लागू किया जाए।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पीठ ने याचिका में दिल्ली सरकार, सीबीएसई और राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) को पक्षकार बनाने के आवेदन को विचारार्थ स्वीकार लिया तथा सुनवाई के लिए 10 मार्च की तारीख तय की। उच्च न्यायालय ने पहले केंद्रीय शिक्षा, विधि एवं न्याय और गृह मंत्रालयों को याचिका पर नोटिस जारी किये थे और जवाब देने को कहा था।
जनहित याचिका में कहा गया कि आरटीई कानून की धारा 1(4) और 1(5) के चलते और मातृभाषा में समान पाठ्यक्रम नहीं होने के कारण अनदेखी की स्थिति बनी हुई है।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि केंद्र सरकार की एक समान शिक्षा प्रणाली लागू करने की जिम्मेदारी है लेकिन वह जरूरी प्रतिबद्धता को पूरी करने में नाकाम रही है और उसने पहले से मौजूद राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा (एनसीएफ) 2005 को ही अपना रखा है जो बहुत पुरानी है।
याचिका में आरटीई कानून के तहत प्रावधानों को चुनौती दी गयी जिनके तहत मदरसा, वैदिक पाठशालाओं और धार्मिक ज्ञान प्रदान कर रहे शिक्षण संस्थानों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है।
याचिका में कहा गया कि मौजूदा प्रणाली सभी बच्चों को समान अवसर प्रदान नहीं करती क्योंकि समाज के हर स्तर के लिए पाठ्यक्रम अलग-अलग होता है।