बच्चियों द्वारा अपने अभिभावकों को घटना के बारे में बताए जाने के बाद मामले में 2014 में दो प्राथमिकी दर्ज की गई थीं।
New Delhi: दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2014 में पांचवीं कक्षा की दो नाबालिग छात्राओं का यौन उत्पीड़न करने के लिए एक स्कूल बस ड्राइवर को सुनाई गई पांच साल कैद की सजा को बरकरार रखा है।
आरोपी ने निचली अदालत के 2020 के फैसले को चुनौती दी थी जिसमें उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 354ए (यौन उत्पीड़न) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धारा 10 (गंभीर यौन उत्पीड़न के लिए सजा) के तहत दोषी ठहराया गया था। उसने इस आधार पर सजा को चुनौती दी कि अभियोजन पक्ष के मामले में विरोधाभास थे और दोनों पीड़िताएं घटना का सही विवरण और तारीख नहीं बता सकीं।
अपील को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने कहा कि आरोप की प्रकृति बहुत गंभीर थी और दोनों पीड़िताओं के बयान में मामूली विरोधाभासों से उनकी गवाही अविश्वसनीय नहीं बनती।
अदालत ने बुधवार को सुनाए फैसले में कहा, ‘‘पीड़ित संख्या 1 और 2, दोनों की गवाही स्पष्ट रूप से अपीलकर्ता द्वारा बच्चियों पर किए गए गंभीर यौन हमले के कृत्यों का वर्णन करती है। घटना का विवरण दोनों पीड़िताओं द्वारा समान तरीके से वर्णित किया गया है। इसलिए, यह दलील स्वीकार नहीं की जा सकती है कि विरोधाभास अभियोजन पक्ष के संस्करण को कमजोर करता है और इसे अविश्वसनीय बनाता है।’’
अदालत ने कहा, ‘‘वर्तमान मामले में, दोनों पीड़िताएं कम उम्र की थीं, यानी घटना के समय केवल 10 वर्ष की आयु की थीं, लेकिन उनके बयानों की पुष्टि हुई है।’’
उच्च न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत की यह राय सही थी कि पीड़िताओं की अपीलकर्ता के खिलाफ कोई रंजिश नहीं होगी कि उसे इस मामले में गलत तरीके से फंसाया जा सके और उनकी कम उम्र को देखते हुए मामूली विरोधाभास उनकी गवाही पर अविश्वास या बदनाम करने का आधार नहीं हो सकता है।
न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने कहा, ‘‘मुझे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, कड़कड़डूमा अदालत, दिल्ली द्वारा 27 फरवरी 2020 और छह मार्च 2020 को पारित आदेशों में कोई त्रुटि या अनियमितता नहीं मिली। इस तरह अपील खारिज की जाती है।’’ बच्चियों द्वारा अपने अभिभावकों को घटना के बारे में बताए जाने के बाद मामले में 2014 में दो प्राथमिकी दर्ज की गई थीं।