इस अभियान की शुरुआत 15 अक्टूबर से प्रस्तावित है।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार राज्य की सभी 74 जेलों में क्षय रोग (टीबी), एचआईवी, हेपेटाइटिस ‘बी’ एवं ‘सी’ और यौन संचारित रोगों की जांच तथा परीक्षण के लिए अक्टूबर माह के दूसरे सप्ताह से एक विशेष अभियान चलाएगी। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) के सहयोग से उत्तर प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी द्वारा चलाए जाने वाले इस अभियान को इंटीग्रेटेड एसटीआई, एचआईवी, टीबी एंड हेपेटाइटिस (आईएसएचटीएच) नाम दिया गया है। विभाग से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश की 74 जेलों में करीब एक लाख 16 हजार कैदी हैं, जिसमें 65 प्रतिशत विचाराधीन कैदी और करीब 35 प्रतिशत सजायाफ्ता कैदी हैं। वर्तमान में इनमें से 1550 कैदी एचआईवी संक्रमित, 440 कैदी क्षय रोग से पीड़ित, 56 कैदी हेपेटाइटिस ‘बी’ और 174 कैदी हेपेटाइटिस ‘सी’ से संक्रमित हैं, जिनका जेलों में निशुल्क इलाज किया जा रहा है।
अपर परियोजना निदेशक उप्र राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी, हीरालाल ने रविवार को पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा, ‘‘राज्य भर की जेलों में क्षय रोग, एचआईवी, हेपेटाइटिस ‘बी’ और ‘सी’ और यौन संचारित रोगों की जांच और परीक्षण के लिए एक विशेष जांच अभियान अक्टूबर माह से शुरू किया जा रहा है। इस उद्देश्य के लिए डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ को तकनीकी और व्यावहारिक रूप से प्रशिक्षित किया गया है।’’ लाल ने कहा, ‘‘केंद्र सरकार की 2025 तक देश को क्षय रोग मुक्त बनाने की प्रतिज्ञा के अनुरूप उत्तर प्रदेश अगले माह से जल्द ही क्षय रोग (टीबी) के लिए जेल कैदियों की गहन जांच और परीक्षण शुरू करेगा।’’.
उन्होंने बताया कि इससे पहले 2016 में राज्य कारागार विभाग और उप्र राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी के संयुक्त प्रयास से एक विशेष अभियान के माध्यम से उत्तर प्रदेश की 69 जेलों में बंद 89,905 कैदियों की एचआईवी जांच कराई गयी थी, जिसमें से 470 कैदियों को एचआईवी संक्रमित पाया गया और सभी के संपूर्ण चिकित्सा उपचार की व्यवस्था कराई गयी थी।
उन्होंने बताया कि विभाग एचआईवी जांच पर ज्यादा जोर इसलिए देता है कि क्योंकि एचआईवी संक्रमित रोगियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कम होती है और उन्हें क्षय रोग होने की संभावना बहुत अधिक होती है। लाल ने बताया कि अब वर्ष 2023 में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) और उत्तर प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी यह अभियान शुरू कर रहा है। प्रदेश में शुरू हो रहे इस अभियान की जिम्मेदारी राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी को दी गयी है। इसमें राज्य क्षय रोग विभाग, संचारी रोग विभाग, महिला कल्याण विभाग आदि विभागों से समन्वय स्थापित कर नोडल अधिकारी नामित किए गए हैं
उन्होंने बताया कि इस अभियान की शुरुआत 15 अक्टूबर से प्रस्तावित है। राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी के संयुक्त निदेशक रमेश श्रीवास्तव ने पीटीआई-भाषा को बताया कि इस अभियान के तहत विभागों की टीम राज्य के समस्त जिलों की जेलों में जाएगी और वहां के सभी कैदियों (विचाराधीन और सजायाफ्ता दोनों) की जांच की जाएगी। इनमें से एचआईवी, क्षय रोग, हेपेटाइटिस और यौन संचारित रोगों के रोगियों को अलग करके उनके नामित नोडल अधिकारी उनके लिए समस्त जांच और दवाओं की नि:शुल्क व्यवस्था करेंगे।
श्रीवास्तव ने बताया कि इस अभियान और कार्यक्रम की निगरानी एवं समीक्षा राज्य कारागार विभाग, उप्र राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी, क्षय रोग विभाग और संचारी रोग विभाग करेंगे।
श्रीवास्तव के मुताबिक क्षय रोगों के 30 से 40 प्रतिशत मामलों का या तो देर से पता चलता है या पता ही नहीं चलता। ये संक्रमण फैलाते रहते हैं क्योंकि एक क्षय रोग से ग्रसित मरीज एक साल में 10 से 15 लोगों को संक्रमित कर सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए हम इस बात पर भी जोर दे रहे हैं कि अगर कोई कैदी जेल से छूट कर अपने घर भी चला जाये तो वह अपना इलाज अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर करा सके, ताकि वह अपने घर परिवार और आसपास के लोगों को इस रोग से संक्रमित न कर सके।’’
अपर परियोजना निदेशक उप्र राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी, हीरालाल उप्र स्वास्थ्य मिशन के अपर मिशन निदेशक भी हैं। उन्होंने बताया कि प्रत्येक जिले के स्तर पर इस अभियान के लिए एचआईवी/एड्स के नोडल अधिकारी, जिला क्षय रोग अधिकारी को समस्त कार्यक्रम संपादन नोडल अधिकारी नामित किया गया है। जिला स्तर पर जेल में शिविर की व्यवस्थायें सुनिश्चित किए जाने के लिए जिले के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक को नोडल अधिकारी नामित किया गया है।
हीरालाल ने बताया कि इस अभियान में प्रदेश की जेलों के अतिरिक्त नारी शरणालय और किशोर गृह को भी शामिल किए जाने की योजना है।.
उन्होंने बताया कि अक्टूबर माह से शुरू हो रहे इस आईएसएचटीएच अभियान में राज्य की जेलों में बंद लगभग एक लाख 16 हजार कैदियों की क्षय रोग, एचआईवी, हेपेटाइटिस ‘बी’ एवं ‘सी’ और यौन संचारित रोगों की जांच प्रस्तावित है। इसके अलावा नारी शरणालय और किशोर गृह में रहने वाली महिलाओं और बच्चों की भी जांच की जाएगी।.
राज्य क्षय रोग अधिकारी डॉ शैलेंद्र भटनागर ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘क्षय रोग किसी भी व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देती है। इसलिए टीबी से ग्रसित व्यक्ति के अन्य संक्रमणों से संक्रमित होने का खतरा रहता है जिससे रोगी अन्य बीमारियों की चपेट में भी आ जाता है, विशेष रूप से अगर मरीज जेल में है। जैसे ही किसी जेल के अंदर क्षय रोग के मामले की पुष्टि होती है, उसका तुरंत इलाज शुरू कर दिया जाता है।’’
डॉ. भटनागर ने कहा, ‘‘राज्य का क्षय रोग विभाग समय-समय पर ‘सक्रिय मामलों की खोज’ अभियान आयोजित करता है - जिसमें स्वास्थ्य विभाग की टीम संभावित क्षय रोगियों की तलाश में घरों का दौरा करती हैं। इस अभ्यास में जेलों और कारागारों को शामिल किया जाता है। किसी कैदी की जांच में क्षय रोग की पुष्टि होने पर उसका इलाज तुरंत शुरू कर दिया जाता है।’’ भटनागर ने बताया कि पिछले साल एक जनवरी से दिसंबर 2022 में उत्तर प्रदेश में पांच लाख 24 हजार क्षय रोगियों का पता लगा था जिनका इलाज करवाया जा रहा है। इस साल अगस्त 2023 तक करीब चार लाख रोगियों का पता लगाकर उनका इलाज शुरू कर दिया गया है।
उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास है कि वर्ष 2025 तक इस रोग का प्रदेश से खात्मा कर दिया जाए। जेल में रहने वाले क्षय रोगों से ग्रस्त रोगियों के इलाज और उनको क्या क्या सुविधाएं दी जाती हैं, इस सवाल पर बरेली जिला जेल के वरिष्ठ अधीक्षक विपिन मिश्रा ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘क्षय रोग से ग्रस्त कैदियों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए उन्हें जेल के अस्पताल में भोजन में रोज एक अंडा दिया जाता है, ताकि उनको पर्याप्त प्रोटीन मिलता रहे। इसके अलावा उन्हें मौसमी फल आदि भी दिए जाते हैं। क्षय रोग से ग्रस्त रोगियों की जांच समय समय पर जेल के डॉक्टर जेल के अस्पताल में करते हैं और उन्हें निशुल्क जांच एवं दवाइयां भी दी जाती हैं।’’
मिश्रा जब पूछा गया कि उनकी जेल में क्षय रोग और एचआईवी ग्रसित कितने रोगी हैं, इस पर उन्होंने बताया, ‘‘बरेली जेल में वर्तमान में क्षय रोग के दो रोगी और एचआईवी संक्रमित 30 रोगी हैं।’’.