उपवास का चलन सिर्फ आज नहीं है, बल्कि सैकड़ों हजारों सदियों से विकसित परंपरा है, जो मनुष्यों को अभाव से निपटने में मदद करता है।
Fasting Effects on Health: क्या आपने कभी सोचा है कि नाश्ता न करने से आपका काम करने का अंदाज सुस्त पड़ सकता है? या क्या आप मानते हैं कि थोड़े समय का उपवास आपको चिड़चिड़ा, विचलित या रचनात्मकता में कमी महसूस करा सकता है? हल्के-फुल्के भोजन के लिए ‘स्नैक फूड’ के विज्ञापन भी हमें चेतावनी देते हैं कि “भूख लगने पर आप, आप नहीं रहते”,और इसी आम धारणा को मजबूत करते हैं कि दिमाग को चुस्त रखने के लिए भोजन बेहद जरूरी है।
पिछले एक दशक में, स्वास्थ्य के प्रति सजग लोगों में दिन के एक निश्चित समय में ही सारा भोजन और नाश्ता करना और कुछ समय का उपवास करने का चलन काफी बढ़ गया है। लाखों लोग इसे वजन प्रबंधन से लेकर दीर्घकालिक स्वास्थ्य लाभ तक पाने के लिए अपनाते हैं। इससे एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है: क्या हम अपनी मानसिक क्षमता को प्रभावित किए बिना उपवास के स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं? इस विषय पर अब तक की सबसे व्यापक समीक्षा की गई है।
आखिर उपवास ही क्यों?
उपवास का चलन सिर्फ आज नहीं है, बल्कि सैकड़ों हजारों सदियों से विकसित परंपरा है, जो मनुष्यों को अभाव से निपटने में मदद करता है।
जब हम नियमित रूप से खाते रहते हैं तो हमारा मस्तिष्क अधिकतर ग्लूकोज पर चलता है, जो शरीर में ग्लाइकोजन के रूप में जमा होता है। लेकिन लगभग 12 घंटे बिना भोजन के रहने के बाद ये ग्लाइकोजन भंडार कम हो जाते हैं।
उस समय शरीर एक चयापचय प्रक्रिया शुरू कर देता है, जिसमें यह वसा को कीटोन बॉडीज (उदाहरण के लिए, एसीटोएसीटेट और बीटा-हाइड्रॉक्सीब्यूटिरेट) में तोड़ना शुरू कर देता है, जो एक वैकल्पिक ईंधन स्रोत प्रदान करते हैं।
इस तरह का ‘मेटाबॉलिज्म’ कभी हमारे पूर्वजों के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण था, जो अब कई स्वास्थ्य लाभों से जुड़ा हुआ है। यह इंसुलिन संवेदनशीलता में भी सुधार करता है जिससे शरीर रक्त शर्करा को अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित कर पाता है और टाइप दो मधुमेह जैसी स्थितियों का जोखिम कम हो जाता है।
आंकड़े क्या दर्शाते हैं
इन शारीरिक लाभों ने उपवास को लेकर लोगों में आकर्षण बढ़ाया है। लेकिन कई लोग इसे अपनाने से हिचकिचाते हैं, क्योंकि उन्हें आशंका रहती है कि कहीं भोजन की निरंतर आपूर्ति नहीं होने से उनका मानसिक प्रदर्शन न गिर जाए।इस समस्या का समाधान करने के लिए हमने एक व्यापक विश्लेषण किया है, जिसमें सभी उपलब्ध प्रायोगिक शोधों का विश्लेषण किया गया, जिसमें लोगों के सोचने समझने की शक्ति के प्रदर्शन की तुलना उपवास के दौरान और भोजन के बाद की गई।
हमारी खोज में 63 वैज्ञानिक लेख मिले, जो 71 स्वतंत्र अध्ययनों का प्रतिनिधित्व करते थे और 3,484 प्रतिभागियों के संयुक्त नमूने का परीक्षण 222 विभिन्न संज्ञानात्मक मापों पर किया गया था। इस शोध में लगभग सात दशकों 1958 से 2025 के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।
उपवास कब मायने रखता है
हमारे विश्लेषण से तीन महत्वपूर्ण कारक सामने आए हैं, जो उपवास के आपके मन मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभाव को बदल सकते हैं। पहला, उम्र महत्वपूर्ण है। उपवास के दौरान वयस्कों के मानसिक प्रदर्शन में कोई उल्लेखनीय गिरावट नहीं देखी गई। लेकिन बच्चों और किशोरों ने भोजन नहीं करने पर परीक्षाओं में खराब प्रदर्शन किया, जो लंबे समय से चली आ रही उस सलाह को पुष्ट करते हैं कि बच्चों को सीखने में मदद के लिए भरपूर नाश्ता करके स्कूल जाना चाहिए।
इसका आपके लिए क्या मतलब है?
ज्यादातर स्वस्थ वयस्कों को ये निष्कर्ष आश्वस्त करते हैं कि आप कुछ समय का उपवास या अन्य प्रकार का उपवास रख सकते हैं तथा आपको इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि उपवास करने से आपकी मानसिक तीक्ष्णता कम हो जाएगी। हालांकि, उपवास हर किसी के लिए एक जैसा नहीं है और बच्चों एवं किशोरों के मामले में सावधानी जरूरी है, क्योंकि उनका मस्तिष्क अब भी विकसित हो रहा है और जिन्हें अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए नियमित भोजन की आवश्यकता होती है।
वहीं, कुछ समूहों के लिए जैसे कि चिकित्सीय स्थितियों या विशेष आहार संबंधी जरूरतों वाले लोगों के लिए पेशेवर मार्गदर्शन के बिना उपवास रखना उचित नहीं हो सकता है। अंत में उपवास को एक सार्वभौमिक तरीके के बजाय एक व्यक्तिगत उपाय के रूप में देखना बेहतर होगा और इसके लाभ एवं चुनौतियां हर व्यक्ति में अलग-अलग होंगी।
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