![Medicines available worth crores of rupees will become cheaper in India Medicines available worth crores of rupees will become cheaper in India](/cover/prev/q9r4kerfgu3fb1m1m4le5a8817-20231125124730.Medi.jpeg)
ये दवाएं आयातित दवाओं की तुलना में काफी सस्ती हैं।
Medicines available worth crores of rupees will become cheaper in India : दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए राहत भरी खबर है। भारत ने 6 सरकार ने दुर्लभ बीमारियों की 8 दवाएं तैयार करने में बड़ी सफलता हासिल करी है. वहीं भारतीय कंपनियों द्वारा निर्मित चार दवाओं के विपणन को मंजूरी दे दी है। ये दवाएं आयातित दवाओं की तुलना में काफी सस्ती हैं। क्योंकि इसे बाहर से मंगाने में सालाना करोड़े रुपसे लगते थे. उदाहरण के लिए, निटिसिनोन कैप्सूल, जिसका उपयोग टायरोसिनेमिया टाइप वन बीमारी के इलाज में किया जाता है, की कीमत सालाना 2.2 करोड़ रुपये है। इसे विदेश से आयात किया जाता है लेकिन देश में बनने वाली दवा की कीमत 2.5 लाख रुपये होगी. यह एक दुर्लभ बीमारी है. इसका एक लाख की आबादी पर एक मरीज पाया जाता है।
इसी तरह, आयातित एलीग्लस्टैट कैप्सूल की एक वार्षिक खुराक की कीमत 1.8 से 3.6 करोड़ रुपये है। यह मेटाबॉलिज्म से जुड़े गोशर रोग की दवा है। लेकिन देश में बनी इस दवा की कीमत तीन से छह लाख रुपये होगी. अधिकारियों के मुताबिक, विल्सन की बीमारी के इलाज में इस्तेमाल होने वाले ट्रिएंटाइन कैप्सूल के आयात पर सालाना 2.2 करोड़ रुपये का खर्च आता है. लेकिन देश में बनी इस दवा पर सालाना सिर्फ 2.2 लाख रुपये खर्च होंगे.
ग्रेवेल-लेनॉक्स गैस्टॉट सिंड्रोम के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा कैनबिडिओल के आयात पर सालाना 7 से 34 लाख रुपये का खर्च आता है। लेकिन देश में बनी इसकी दवा 1 लाख से 5 लाख रुपये में मिलेगी. अधिकारियों का कहना है कि सिकल सेल एनीमिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाले हाइड्रोक्सीयूरिया सिरप की व्यावसायिक आपूर्ति मार्च 2024 में शुरू होने की संभावना है और इसकी कीमत 405 रुपये प्रति शीशी हो सकती है।
फिलहाल इसकी 100 ml बोतल की कीमत 840 डॉलर यानी 70,000 रुपये है. इन सभी दवाओं का निर्माण अब तक भारत में नहीं होता था. पर अब ये चार दवाएं जल्द ही मार्केट में आएगा।
क्यों महंगी होती है ये दवाएं
बता दें कि दुर्लभ बिमारी वो कहलाती है जो एक हजार में एक से कम व्यक्ति को होती है. देश मे इन बिमारीयों का कोई ठोस आकड़ा नहीं है. लेकिन देश में आठ से दस करोड़ ऐसे रोगी होने का अनुमान है. यह आम बीमारियां नहीं है. 80 % तक ये बीमारियां अनुवांशिक होती है. इनकी दवाएं बहुत ही कम कंपनियां बनाती है. और यही कारण है कि इन दवाओं की कीमत काफी महंगी होती है.