कोर्ट ने कहा लिव इन रिलेशन पाश्चात्य धारणा है जो भारतीय संस्कृति से मेल नहीं खाती है।
• छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने लिव इन रिलेशन से जुड़े मामले में सुनवाई के दौरान की टिप्पणी
• डिवीजन बेंच ने परिवार न्यायालय के फैसले को सही ठहराया, खारिज की याचिका
Chhattisgarh High Court comment on 'Live in Relationship News: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने परिवार न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा लिव इन रिलेशन पाश्चात्य धारणा है जो भारतीय संस्कृति से मेल नहीं खाती है। यह हमारी संस्कृति के लिए कलंक है। भारतीय परंपरा में प्रत्येक नागरिक के पास स्वयं की एक ऐसी भावना होती है जो अद्वितीय होती है और भ्रमित होने की संभावना नहीं होती।
एक विवाहित व्यक्ति के लिए लिव इन से बाहर आना आसान होता है लेकिन इससे अलग हुए व्यक्ति दशा दुखद होती है। ऐसे संबंध से हुए बच्चे को लेकर न्याय पालिका आंख बंद कर नहीं कर सकती। इसी के साथ कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। पहले से शादीशुदा और तीन बच्चों के पिता दंतेवाड़ा निवासी अब्दुल हमीद सिद्दिकी करीब तीन साल से एक हिंदू महिला के साथ लिव इन रिलेशन में था। हिंदू महिला ने 10 अगस्त, 2021 में बच्चे को जन्म दिया। इसके कुछ दिनों बाद महिला बच्चे के साथ माता पिता के घर चली गई। इसके बाद अब्दुल हमीद ने 2023 में हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। सुनवाई के दौरान माता-पिता और बच्चे के साथ कोर्ट में पेश हुई महिला ने कहा कि वह अपनी माता-पिता के साथ रह रही है।
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बच्चे की देखभाल करने में वह सक्षम है। बच्चे की समुचित देखभाल की मांग करते हुए अब्दुल हमीद सिद्दिकी ने दंतेवाड़ा परिवार न्यायालय में याचिका दायर की थी। इसमें कहा था कि उसकी आय अच्छी है, लिहाजा वह बच्चे की अच्छी तरह देखभाल कर सकता है। वह बच्चे को अच्छी शिक्षा देने में भी सक्षम है। सुनवाई के बाद परिवार न्यायालय ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट में दायर बंदी प्रत्याक्षीकरण याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा कि उसने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत विवाह किया है, जो अंतरधार्मिक था। मुस्लिम कानून के तहत एक व्यक्ति को दूसरा विवाह करने की अनुमति है, लिहाजा विवाह वैध होगा और ऐसे विवाह से पैदा हुए बच्चो के लिए वो प्राकृतिक अभिभावक है। वह बच्चे की कस्टडी पाने का हकदार है।
विवाह जैसे रिश्ते का ना निभाना सामाजिक कलंक
अदालत ने कहा कि लिव इन रिलेशन भारतीय संस्कृति पर कलंक के तौर पर जारी है। विवाह संस्था किसी व्यक्ति को जो सुरक्षा, सामाजिक स्वीकृति, प्रगति और स्थिरता प्रदान करती है, वह लिव इन रिलेशनशिप कभी प्रदान नहीं करती है। हमारे देश में विवाह जैसे रिश्ते का न निभाया जाना सामाजिक कलंक माना जाता है । सामाजिक मूल्यों, रीति-रिवाजों, परंपराओं और यहां तक कि कानून ने भी विवाह की स्थिस्ता सुनिश्चित करने का प्रयास किया है। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि विवाह में समस्याएं आती है। समाज के सूक्ष्म परीक्षण से पता है कि विवाह संस्था के वैवाहिक कर्तव्यों के प्रति इस महत्वपूर्ण बदलाय उदासीनता ने संभवतः लिव इन रिलेशन को जन्म दिया है।
(For more news apart from 'Live in relationship stigma, not matching with our culture', big comment from Chhattisgarh High Court , stay tuned to Rozana Spokesman)