Bihar News: गया के छकरबंधा गांव के लोग आज भी मोबाईल नेटवर्क से नहीं जुड़ पाए

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Bihar News: गया के छकरबंधा गांव के लोग आज भी मोबाईल नेटवर्क से नहीं जुड़ पाए
Published : Nov 6, 2024, 5:36 pm IST
Updated : Nov 6, 2024, 5:36 pm IST
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Chhakarbandha village People could not connect to mobile network even today news
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केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी का इलाका रहा है ये क्षेत्र, प्रशांत किशोर के प्रयास के बाद एयरटेल ने शुरू की टावर लगाने की पहल

Bihar News In Hindi: बिहार में इन दिनों विधानसभा उपचुनाव चल रहे हैं। चार सीटों पर हो रहे उपचुनाव में एक सीट गया जिले की इमामगंज है। यहां के विधायक पूर्व मुख्यमंत्री, वर्तमान केंद्रीय मंत्री और हम पार्टी के सुप्रीमो जीतन राम मांझी लोकसभा में गया सीट से जीतकर संसद पहुंच गए तो ये सीट खाली हो गई। उपचुनाव में उनकी बहू दीपा मांझी इस सीट NDA की उम्मीदवार हैं। जीतन राम मांझी के बेटे संतोष मांझी एमएलसी हैं और बिहार सरकार में मंत्री हैं। मांझी खुद केंद्र की मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। इमामगंज की सीट जीतन राम मांझी की परंपरागत सीट रही है। वो यहां 10 साल से अधिक विधायक रह चुके हैं। इतनी हाई प्रोफाइल सीट होने के कारण यह क्षेत्र हमेशा चर्चा में रहा है। इस उपचुनाव में भी यह सीट चर्चा का केंद्र बना हुआ है, लेकिन इस बार करण जीतन राम मांझी नहीं बल्कि प्रशांत किशोर हैं।

छकरबंधा में प्रशांत किशोर की सभा ने यहां के लोगों को एक उम्मीद की राह दिखाई

प्रशांत किशोर बिहार में जन सुराज अभियान चला रहे हैं। पिछले 2 अक्टूबर को जन सुराज अभियान एक राजनीतिक दल बन चुका है और उसी दिन प्रशांत किशोर ने ये घोषणा की थी कि जन सुराज विधानसभा के उपचुनाव में सभी 4 सीटों पर चुनाव लड़ेगा। इमामगंज सीट से जन सुराज ने स्थानीय जितेंद्र पासवान को टिकट दिया है। इस सीट से राजद के उम्मीदवार रौशन मांझी हैं। प्रशांत किशोर जन सुराज के उम्मीदवार जितेंद्र पासवान के पक्ष में लगातार चुनावी सभाओं को संबोधित कर रहे हैं और अलग-अलग पंचायतों में जन संपर्क कर रहे हैं। अपने कार्यक्रम के दौरान 3 नवंबर को प्रशांत किशोर इमामगंज विधानसभा के छकरबंधा पंचायत में पहुंचे थे। ये पंचायत इमामगंज विधानसभा के अंतर्गत डुमरिया प्रखंड में आता है। इस पंचायत की बसावट घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच है। बिहार में नक्सलवाद के दौर में इस पंचायत की गिनती नक्सल प्रभावित इलाकों में होती थी। यहां शाम ढलने के बाद कोई भी जाने की साहस नहीं कर पाता था। स्थानीय लोग बताते हैं कि कोई भी बड़ा नेता इस गांव की ओर नहीं आता है। चुनाव के समय लोग आते हैं और झूठे वादे करके वोट लेकर चले जाते हैं। सड़क और बिजली भी हाल के दिनों में यहां आई है। लेकिन संचार क्रांति की इस दौर में भी यहां के लोग आज भी मोबाईल नेटवर्क से वंचित हैं। इस पंचायत में किसी भी मोबाईल कंपनी का नेटवर्क नहीं आता है। नेटवर्क के लिए लोगों को ऊंचे पेड़ों और पहाड़ों पर चढ़ना पड़ता है।

PK का वादा - 2 महीने के भीतर गांव में अपने साधन से टावर लगवाएंगे

3 नवंबर को जब प्रशांत किशोर यहां आएं तो हजारों की संख्या में लोग उन्हें सुनने के लिए पहुंचे। उन्हें लोगों ने बताया कि इस पंचायत में मोबाईल का नेटवर्क नहीं आता है। प्रशांत किशोर ने अपनी सभा के दौरान मंच से ये घोषणा कर दी की दो महीने के भीतर वो अपने संसाधन से यहां मोबाईल टावर लगवाने का प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा, "चुनाव में आपको जिसको वोट देना है दीजिए, लेकिन हम अपने साधन से आपका टावर लगवा देंगे। दो महीने का समय लगेगा, जनवरी तक आपके गांव में एयरटेल या जियो का टावर लग जाएगा और जन सुराज की जब जीत होगी तब पहली सभा छकरबंधा में की जाएगी।"

प्रशांत किशोर की इस घोषणा से स्थानीय लोग उत्साहित तो थे लेकिन उन्हें पहले लगा कि ये एक चुनावी वादा है जो हर नेता करता है और वोट लेने के बाद भूल जाता है। लेकिन प्रशांत किशोर ने भाषण के 48 घंटे के भीतर एयरटेल कंपनी के लोग टावर लगाने के लिए सर्वेक्षण करने छकरबंधा पहुंच गए। स्थानीय लोगों के लिए ये किसी आश्चर्य से कम नहीं था। एयरटेल की टीम ने छकरबंधा में सर्वे का काम शुरू कर दिया है। उन्होंने स्थानीय लोगों से जाना कि यहां की आबादी कितनी है। कितने लोगों के पास एंड्रॉयड फोन है, क्या क्या समस्या है। सरकारी शिक्षक हाजिरी कैसे बनाते हैं? ऑनलाइन पढ़ाई कैसे होती है आदि। सब कुछ जानने और समझने के बाद कहा कि एक महीने के अंदर यहां नेटवर्क लग जाएगा। प्रशांत किशोर की इस पहल से इलाके के लोग बेहद खुश हैं, उनका कहना है कि वादे तो सभी नहीं किए लेकिन वोट लेने के बाद सब भूल जाते हैं, पहली बार वादा पूरा होता दिख रहा है।

क्या छकरबंधा का लाल इतिहास उसके पिछड़ेपन का मुख्य कारण है

गया जिला मुख्यालय से लगभग 90 किमी की दूरी पर डुमरिया प्रखंड स्थित छकरबंधा का इलाका 2012 के पहले नक्सलियों का गढ़ कहा जाता था, जिसे लोगों ने "लाल गढ़" नाम दिया था। इस पंचायत की कुल आबादी लगभग 15 हजार है। यहां 2012 में सीआरपीएफ़ की एक टुकड़ी आई, 2013 से सीआरपीएफ़ के जवान स्थाई कैंप बनाकर यहां ड्यूटी कर रहे हैं। छकरबंधा थाना के भवन का उद्घाटन भी 4-5 महीने पहले ही हुआ है, उससे पहले थाना सीआरपीएफ़ कैंपस से ही संचालित होता था। विकास के मामले में यह बिहार के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक है, यहां शिक्षा या स्वास्थ्य की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है। 2019 में यहां पहली बार पक्की सड़क बनी। डिजिटल इंडिया के इस दौर में यहां लोग इंटरनेट और मोबाईल नेटवर्क के लिए आज भी संघर्ष कर रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि आजादी के 70 साल बाद भी यहां आजतक एम्बुलेंस की सुविधा नहीं पहुंची है। यदि कोई बीमार होता है तो गांव के लोग उसे बांस की लकड़ी से बने बेड पर रखकर और अपने कंधे पर उठाकर 8 किमी पैदल पहाड़ियों से नीचे लाते हैं। फिर वहां से उन्हें जिला मुख्यालय गया आने की गाड़ी मिलती है। कई लोग रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। जब भी कोई यहां के लोगों से उनकी समस्याओं के बारे में बात करता है तो उनकी आंखों में एक उम्मीद दिखाई देती है। चुनाव के नतीजे चाहे जो जाएं लेकिन प्रशांत किशोर ने यहां विकास के लिए एक उम्मीद की किरण तो जगा ही दी है।

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