वेद प्रताप वैदिक जी का जाना पत्रकारिता जगत की अपूर्णीय क्षति : आर.के. सिन्हा

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वेद प्रताप वैदिक जी का जाना पत्रकारिता जगत की अपूर्णीय क्षति : आर.के. सिन्हा
Published : Mar 15, 2023, 5:50 pm IST
Updated : Mar 15, 2023, 5:50 pm IST
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The demise of Ved Pratap Vaidik ji is an irreparable loss to the journalism world: R.K. Sinha
The demise of Ved Pratap Vaidik ji is an irreparable loss to the journalism world: R.K. Sinha

देश-विदेश के सैकड़ों समाचार पत्रों में उनके लेख प्रतिदिन छपते भी रहते थे।

पटना , (संवाददाता) : पूर्व राज्यसभा सांसद आर.के. सिन्हा ने क‌हा कि वेद प्रताप वैदिक जी का अचानक हमलोगों के बीच से जाना पूरे पत्रकारिता जगत के लिए बहुत ही बड़ा नुकसान है। वेद प्रताप वैदिक जी इस आयु में भी लगभग प्रतिदिन लिखते थे और देश-विदेश के सैकड़ों समाचार पत्रों में उनके लेख प्रतिदिन छपते भी रहते थे।

आज सुबह ही मैं वैदिक जी का ताजा लेख पढ़ रहा था। ‘‘विदेश नीति में भारत से चीन आगे क्यों’’। यह लेख ईरान और सउदी अरब के बीच के समझौते को लेकर है। वेद जी की चिंता थी कि इसकी सारा श्रेय चीन लूटे चला जा रहा है और भारत ईरान-सउदी अरब दोनों देश का मित्र देश होने के बावजूद चुपचाप बैठा है। यह लेख वैदिक जी ने मुझे 11 मार्च को सुबह 7.56 मिनट पर भेजा। फिर दुबारा यही लेख 7.57 मिनट पर भी भेजा। वैसा वे कई बार ऐसा करते भी थे। जब वे ऐसा सोचते थे तो उस लेख को मुझे पढ़ना जरूरी है। वेद जी मेरे बड़े भाई के तरह थे। जब भी वे किसी आयोजन में पटना आते तो वे मेरे निवास अन्नपूर्णा भवन में ही ठहरते थे। मेरे घर का भोजन उन्हें पसंद था।

सामान्यतः पूर्णत शाकाहारी व्यक्ति को किसी दूसरे के घर का भोजन तभी रूचिकर लगता है जब उन्हें मन पसन्द का भोजन मिले। वैसे तो वे अपना सूखा भोजन लेकर ही प्रवास करते थे। लेकिन, वेद जी जब मेरे घर आते थे, तो बहुत ही निश्चित होकर शांतभाव से अपने पसन्द का भोजन करते थे। उनके लिए भोजन से कहीं ज्यादा जरूरी था, प्रतिदिन सम सामयिक विषयों पर लिखना और उसे ज्यादा से ज्यादा देश दुनिया के तमाम अखबारों में और मित्रों के बीच प्रसारित करना। कोई कुछ पैसा दे दे तो ठीक है और नहीं भी दे तो भी ठीक। उनके द्वारा प्रसारित पूरा लेख छापे तो बहुत बढ़िया। काट-छांट कर भी छापे तो भी कोई शिकायत नहीं। कोई उनके लेख का पारिश्रमिक भेज दे तो भी धन्यवाद और न भी भेजे तो भी उससे कोई शिकायत नहीं। अपने पचास वर्ष के पत्रकारिता जीवन में मैंने ऐसे सिर्फ दो महान सम्पादक पाये जो ‘‘स्वान्तः सुखायः’’ प्रतिदिन करते थे। एक थे डा0 वेद प्रताप वैदिक और दूसरे थे बड़े भाई स्वर्गीय भानु प्रताप शुक्ल।

उन्होंने कभी इस बात की चिंता ही नहीं की कि किसी ने कुछ दिया या नहीं या दिया तो कितना दिया। उनका पत्रकारिता का धर्म था लिखना कर्तव्यबोध था अपनी बात को साफगोई से निर्भिकता पूर्वक व्यक्त करना। वैदिक जी सबके मित्र थे। कभी किसी से कटु शब्द बोलते नहीं थे। लेकिन, यदि जरूरत पड़े और उनका पत्रकारिता का धर्म किसी की आलोचना करने को विवष करे तो वे किसी को आलोचना करने से हिचकते भी नहीं थे।

Location: India, Bihar, Patna

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