उन्होंने कहा कि पोस्टमॉर्टम करने वाला डॉक्टर न तो शव का सरंक्षक है और न ही उक्त शव उसकी संपत्ति है।
New Delhi: दिल्ली हाई कोर्ट ने पोस्टमॉर्टम के लिए अस्पताल आए शवों से खोपड़ी और ऊत्तक सहित अन्य अंग अवैध रूप से निकाले जाने की जांच कराने का अनुरोध करने वाली एक चिकित्सक की याचिका पर सोमवार को दिल्ली सरकार और मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज (एमएएमसी) से जवाब तलब किया। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने दिल्ली सरकार और एमएएमसी से याचिका में उठाए गए बिंदुओं पर जवाब देने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई 15 जनवरी 2024 तक के लिए स्थगित कर दी।
एमएएमसी के फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग के पूर्व प्रमुख और प्रोफेसर डॉक्टर उपेंद्र किशोर ने अपनी याचिका में कहा कि शव से अस्थि या ऊत्तक को निकालना ‘गैर कानूनी’, अनैतिक है और मृतक व्यक्ति की गरिमा को भंग करता है।’’
उन्होंने कहा कि पोस्टमॉर्टम करने वाला डॉक्टर अगर समझता है कि कोई खास अंग या ऊत्तक ‘अकादमिक’ कार्य के लिए उपयोगी है तो इसका अभिप्राय यह नहीं है कि वह शरीर से उन हिस्सों को निकाल सकता है। उन्होंने कहा कि पोस्टमॉर्टम करने वाला डॉक्टर न तो शव का सरंक्षक है और न ही उक्त शव उसकी संपत्ति है। याचिका में कहा गया कि शव मानव का है, भले ही उसकी मौत हो गई है, लेकिन उसके भी अपने अधिकार और गरिमा है। डॉ.बाबा साहेब आम्बेडकर मेडिकल कॉलेज अस्पाल में स्थानांतरित किए गए डॉ.किशोर ने उच्च न्यायायलय या जिला अदालत के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में स्वतंत्र समिति बनाकर पूरे प्रकरण की जांच कराने का अनुरोध किया है।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि एमएएमसी के कई डॉक्टर कथित तौर पर इस कृत्य में संलिप्त हैं और जब उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई तो उनका उत्पीड़न किया गया और उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए एवं स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने कहा कि जो इसमें संलिप्त हैं वे भी अंगों को निकालने से इनकार नहीं कर रहे हैं, लेकिन दावा कर रहे हैं कि वे ऐसा अकादमिक कार्य के लिए करते हैं।
याचिका में दावा किया गया, ‘‘यह ध्यान देने योग्य है कि काला बाजार में, एक पूर्ण मानव कंकाल की वर्तमान कीमत लगभग 8-10 लाख रुपये है, एक खोपड़ी की कीमत लगभग 2-3 लाख रुपये है, एक स्लाइड बॉक्स की कीमत लगभग पांच लाख रुपये है।’’