इसके लिए छह महीने तक की साधारण कैद और/या 2,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
अहमदाबाद : गुजरात उच्च न्यायालय ने पिछले साल अक्टूबर में खेड़ा जिले में गिरफ्तार अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ सदस्यों की सार्वजनिक रूप से पिटाई मामले में चार पुलिसकर्मियों की भूमिका के लिए अदालत की अवमानना को लेकर उनके खिलाफ बुधवार को आरोप तय किए।
चार आरोपी पुलिसकर्मियों में से एक के संदर्भ में उच्च न्यायालय ने कहा कि ‘‘अवैध और अपमानजनक कृत्य’’ को अंजाम देने में उसकी ‘‘मौन सहमति या स्वीकृति’’ थी, इसलिए, आरोप तय करने से उसे कोई छूट नहीं दी जा सकती। न्यायमूर्ति ए. एस. सुपेहिया और न्यायमूर्ति एम. आर. मेंगडे की पीठ ने कहा कि चार पुलिसकर्मियों-एक निरीक्षक, एक उप निरीक्षक और दो कांस्टेबल- चार अक्टूबर, 2022 को जिले के उंधेला गांव में हुई इस घटना में ‘‘सक्रिय रूप से शामिल हुए और याचिकाकर्ताओं को एक खंभे से बांधकर सार्वजनिक रूप पिटाई की गई।’’
उच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसा करके पुलिसकर्मियों ने डी. के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया। अदालत ने चार पुलिसकर्मियों के खिलाफ आरोप तय करते हुए कहा कि उन्होंने अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 (किसी भी निर्णय, निर्देश, आदेश, रिट या अदालत की अन्य प्रक्रिया या जानबूझकर उल्लंघन से संबंधित) की धारा 12 के साथ पठित धारा 2 (बी) के तहत यह कृत्य किया।
इसके लिए छह महीने तक की साधारण कैद और/या 2,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। चारों आरोपी पुलिसकर्मी निरीक्षक ए. वी. परमार, उप निरीक्षक (एसआई) डी. बी. कुमावत, हेड कांस्टेबल के. एल. डाभी और कांस्टेबल आर. आर. डाभी हैं। पिछले साल अक्टूबर में नवरात्रि उत्सव के दौरान खेड़ा जिले के उंधेला गांव में एक गरबा नृत्य कार्यक्रम पर मुस्लिम समुदाय के सदस्यों की भीड़ ने कथित तौर पर पथराव किया था, जिसमें कुछ ग्रामीण और पुलिसकर्मी घायल हो गए थे।
सोशल मीडिया पर वीडियो प्रसारित हुए जिनमें पुलिसकर्मी कथित तौर पर पथराव करने के आरोप में गिरफ्तार किए गए 13 लोगों में से तीन की कथित तौर पर पिटाई करते दिखे। कुछ आरोपियों ने बाद में उच्च न्यायालय का रुख किया और दावा किया कि इस कृत्य में शामिल पुलिसकर्मियों ने उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन करके अदालत की अवमानना की है। मामले में कुल 13 पुलिसकर्मी आरोपी थे। अदालत ने कहा कि नौ अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ आरोप तय नहीं किए गए, क्योंकि वे इसमें शामिल नहीं पाए गए। इन नौ पुलिसकर्मियों को खेड़ा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) की रिपोर्ट के अनुसार मामले में प्रतिवादी बनाया गया था।
उच्च न्यायालय ने प्रतिवादियों के वकील को उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों का जवाब देने के लिए और हलफनामा दायर करने की भी अनुमति दी। इस मामले की अगली सुनवाई 11 अक्टूबर को होगी। उच्च न्यायालय ने 12 जुलाई को अपने आदेश में कहा था कि कार्यवाही जारी रखने योग्य है और रिकॉर्ड पर रखे गए वीडियो और तस्वीरों की सामग्री को सत्यापित करने के बाद प्रत्येक प्रतिवादियों की भूमिका के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए खेड़ा में सीजेएम को निर्देश जारी किए।
सीजेएम ने 31 जुलाई की अपनी रिपोर्ट में प्रतिवादी संख्या 2, 3, 5 और 13 की पहचान की और कहा कि घटना के समय उनकी मौजूदगी पाई गई। मजिस्ट्रेट ने नौ अन्य प्रतिवादियों की भूमिका की पहचान नहीं की, इसलिए उनके खिलाफ कोई आरोप तय नहीं किया गया।