असमर्थताओं पर जीत की कहानी: चंडीगढ़ MC के फायरमैन सुभाष ने कैंसर को दी मात, फिर कुश्ती में जीता कांस्य पदक

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असमर्थताओं पर जीत की कहानी: चंडीगढ़ MC के फायरमैन सुभाष ने कैंसर को दी मात, फिर कुश्ती में जीता कांस्य पदक
Published : Feb 23, 2024, 12:25 pm IST
Updated : Feb 23, 2024, 12:25 pm IST
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Chandigarh MC fireman Subhash Punia beats cancer Won bronze medal in wrestling
Chandigarh MC fireman Subhash Punia beats cancer Won bronze medal in wrestling

चंडीगढ़ एमसी के फायर डिपार्टमेंट के चीफ फायरमैन सुभाष पूनिया की यह जीत छोटी नहीं है.

Chandigarh MC fireman Subhash Punia Beats Cancer, Story of Victory Over Disabilities: अगर इंसान ठान ले तो वह क्या नहीं कर सकता. उसे लड़ने और जीतने के लिए केवल साहस की जरूरत है।  कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपनी असमर्थताओं को मात देकर अपने सपनों को सच किया है. 47 साल के पहलवान सुभाष पुनिया भी उन्हीं लोगों में शामिल है, जिन्होंने कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को हराकर 1 से 4 फरवरी तक अहमदाबाद में आयोजित ऑल इंडिया फायर सर्विस गेम्स में कुश्ती में कांस्य पदक जीता है और उन लोगों के लिए एक उदहारण सेट किया है जो इस तरह के ही जानलेवा बीमारियों से ग्रसित है और जीने की उम्मींद हार चुके है ।

चंडीगढ़ एमसी के फायर डिपार्टमेंट के चीफ फायरमैन सुभाष पूनिया की यह जीत छोटी नहीं है. कैंसर का पता चलने के बाद इंसान टूट जाता है। कीमोथेरेपी के दौरान शरीर की हालत खराब हो जाती है लेकिन पुनिया ने 12 कीमोथेरेपी ट्रीटमेंट के बाद यह जीत दर्ज की है। उनकी जीत पर नगर निगम आयुक्त अनिंदिता मित्रा का कहना है कि यह एक बड़ी उपलब्धि है, जो सुभाष के धैर्य और दृढ़ संकल्प को बयां करती है.

सुभाष अन्य मरीजों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं। उनका कहना है कि अगर हम बुरी परिस्थितियों से लड़ सकें तो जिंदगी फिर से सामान्य हो सकती है। सुभाष ने बताया कि उन्होंने 100 किलो से ऊपर की कैटेगरी में कुश्ती लड़ी, जबकि सुभाष का वजन 95 किलो था. उन्होंने कहा कि जब वह कैंसर से जूझ रहे थे तब भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और इस बार भी उन्होंने चंडीगढ़ का प्रतिनिधित्व करते हुए पदक जीता।

सुभाष का इलाज कर रहे पीजीआई चंडीगढ़ के हेमेटोलॉजी विभाग के प्रोफेसर पंकज मल्होत्रा ​​का कहना है कि सुभाष एक प्रकार के ब्लड कैंसर हॉजकिन लिंफोमा से पीड़ित थे। यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है। वह 2018 से सुभाष का इलाज कर रहे हैं। उनमें अद्भुत साहस है. इसी हिम्मत के दम पर उन्होंने इस बीमारी को हरा दिया है.

सुभाष का कहना है कि लगातार बुखार और वजन कम होने के बाद वह 2017 में जीएमसीएच-32 में पहली बार डॉक्टर से मिले थे। टीबी की बीमारी न होने के बावजूद उनका एक साल तक टीबी का इलाज चला। जब आराम नहीं मिला तो वह पीजीआई पहुंचे, जहां उन्हें कैंसर होने का पता चला। सुभाष ने कहा कि जब मैंने कैंसर शब्द सुना तो ऐसा लगा जैसे पूरी दुनिया रुक गई हो और मुझे लगा कि अब मैं नहीं बचूंगा लेकिन जीत के जज्बे, सकारात्मक सोच और पत्नी के लगातार सहयोग से अब मैंने इस पर काबू पा लिया है।

कीमोथेरेपी के 12 चक्र पूरे करने के बाद सुभाष कुश्ती लड़ रहे हैं। हालाँकि, यह आसान नहीं था क्योंकि कीमोथेरेपी के कारण उनके प्लेटलेट्स कम हो गए थे और वह कमज़ोर हो गए थे। सुभाष ने कहा कि आठवीं कीमोथेरेपी के बाद मुझे प्लेटलेट्स बढ़ाने के लिए दवा का इंजेक्शन लेना पड़ा, जो बहुत दर्दनाक था। इलाज के बाद मैंने कुश्ती लड़ने का फैसला किया। इसके लिए मुझे खूब व्यायाम करना पड़ा, सही खान-पान करना पड़ा और योग करना पड़ा।

इलाज के दौरान सुभाष ने कोई लापरवाही नहीं बरती। खान-पान और रहन-सहन पर विशेष ध्यान दिया गया। इलाज के साथ-साथ यह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति की भी जीत है कि उन्होंने न सिर्फ कैंसर जैसी बीमारी पर जीत हासिल की बल्कि खेलों में भी अच्छा प्रदर्शन किया.

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