सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने छूट दे दी और पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया।
New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो सामूहिक दुष्कर्म और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में सभी 11 दोषियों को पिछले साल दी गई सजा में छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू करने के लिए सात अगस्त की तारीख तय की।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि दलीलें पूरी हो चुकी हैं और सभी दोषियों को समाचार पत्र प्रकाशनों के माध्यम से या सीधे नोटिस दिए गए हैं।
पीठ ने कहा, “हमारा मानना है कि मामले में दलीलें पूरी हो चुकी हैं और सभी उत्तरदाताओं को सभी मामलों में समाचार पत्रों के प्रकाशनों के माध्यम से या सीधे तौर पर नोटिस दिए गए हैं। हम मामले को सात अगस्त को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हैं। सभी पक्षों को संक्षिप्त लिखित दलील, सारांश और तारीखों की सूची दाखिल करनी चाहिए।”
शीर्ष अदालत ने नौ मई को उन दोषियों के खिलाफ गुजराती और अंग्रेजी सहित स्थानीय समाचार पत्रों में नोटिस प्रकाशित करने का निर्देश दिया था, जिन्हें नोटिस नहीं दिया जा सका, जिसमें वह व्यक्ति भी शामिल था, जिसके घर पर स्थानीय पुलिस ने ताला लगा हुआ पाया था और उसका फोन भी बंद था।
सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने छूट दे दी और पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया।
बानो ने दोषियों को दी गई सजा में छूट को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की है। सजा में छूट के खिलाफ माकपा नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य ने जनहित याचिकाएं दायर की हैं।
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मोइत्रा ने भी दोषियों को दी गई सजा में छूट और रिहाई के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है। गोधरा ट्रेन अग्निकांड की घटना के बाद भड़के दंगों के दौरान बानो से दुष्कर्म किया गया था। बानो तब 21 साल की थी और पांच महीने की गर्भवती थी। दंगों में उसकी तीन साल की बेटी समेत परिवार के सात सदस्यों को मार दिया गया था।