कफ सिरप या जहर! बच्चों की मौत का कारण बन रही दवा, SIT जांच के बाद होगा बड़ा खुलासा..

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कफ सिरप या जहर! बच्चों की मौत का कारण बन रही दवा, SIT जांच के बाद होगा बड़ा खुलासा...
Published : Oct 7, 2025, 5:48 pm IST
Updated : Oct 7, 2025, 5:48 pm IST
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 The drug is causing children's deaths a major revelation will be made after an SIT investigation news in hindi
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छिंदवाड़ा में 6 बच्चों की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग अलर्ट पर है और डॉक्टरों को कफ सिरप के उपयोग को लेकर सतर्क रहने की सलाह

MP Cough Syrup Death Cases: देश के कई राज्यों में जहरीली कफ सिरप के कारण हाहाकार मचा है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में जहरीली कफ सिरप के कारण 18 बच्चों की मौत हो गई है, जिनमें से 14 मौतें मध्य प्रदेश में हुई हैं। इस मामले में मध्य प्रदेश सरकार ने एक एसआईटी का गठन किया है और केंद्र सरकार ने 5 साल से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप न देने की सलाह दी है। राजस्थान सरकार ने भी कफ सिरप की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है और जांच शुरू कर दी है। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में 6 बच्चों की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग अलर्ट पर है और डॉक्टरों को कफ सिरप के उपयोग को लेकर सतर्क रहने की सलाह दी गई है

देश के कई राज्यों में जहरीली कफ सिरप पीने से मासूम बच्चों की मौत के मामले ने अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इस बाबत वकील विशाल तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की है, जिसमें यह सुनिश्चित करने के लिए कई कड़े कदम उठाने की मांग की गई है कि ऐसी त्रासदी दोबारा न हो।

वकील विशाल तिवारी ने अपनी याचिका में मांग की है कि मामले की गहन जांच राष्ट्रीय न्यायिक आयोग या सीबीआई के जरिए विशेषज्ञों की समिति बनाकर कराई जाए. याचिका में मांग की गई है कि इस जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज करें। बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार विषैले सिरप बनाने वाली कंपनियों के लाइसेंस तुरंत रद्द किए जाएं, उन्हें बंद किया जाए और उनके उत्पादों को बाजार से वापस मंगाने का इंतजाम किया जाए. साथ ही, देश में एक सख्त 'ड्रग रिकॉल पॉलिसी' बनाई जाए।

दवाओं में प्रयुक्त खतरनाक रसायन डाई इथीलीन ग्लाइकॉल और एथलीन ग्लाइकॉल की बिक्री और निगरानी के लिए सख्त नियम बनाए जाएं. बच्चों की मौत के मामले में विभिन्न राज्यों में दर्ज सभी एफआईआर को एक जगह ट्रांसफर करके जांच कराई जाए, ताकि जांच में समन्वय बना रहे. याचिका में कहा गया है कि यह मामला केवल कुछ कंपनियों की गलती का नहीं, बल्कि देश की ड्रग रेगुलेटरी सिस्टम की विफलता का है, जिसकी वजह से कई राज्यों में मासूमों की जान गई है।

पहले भी बच्चों की जान ले चुका है कफ सिरप 

आज से 3 साल पहले अफ्रीकी देश गाम्बिया में कफ सिरप पीने से 66 बच्चों की मौत हो गई थी। दूसरी घटना इंडोनेशिया की है, जहां कफ सिरप पीने से 200 बच्चों की मौत ने हड़कंप मचा दिया था। वहीं तीसरी घटना उज्बेकिस्तान की है, जहां जहरीला कफ सिरप पीने से 18 बच्चों ने दम तोड़ दिया।

WHO की जांच में सामने आया कि इन सभी कफ सिरप में DEG और EG जैसे जहरीले पदार्थ मिले थे। सबसे बड़ी बात ये है कि ज्यादातर सिरप बनाने वाली कंपनियां भारतीय थीं।अगर भारत में सरकारें और संबंधित विभाग बच्चों की इन मौतों से खबरदार हो जाते तो मध्य प्रदेश से राजस्थान तक छोटे बच्चों की मौत नहीं होती।

सवाल ये है कफ सिरप में ऐसा क्या है, जो बच्चों के लिए जहर बन जाता है? 
इसका जवाब खांसी के सिरप बनाने में इस्तेमाल होने वाले पदार्थ हैं। आमतौर पर इसमें क्लोरफेनिरामाइन और फेनिलफ्राइन दवाइयों का इस्तेमाल होता है। 4 साल से कम उम्र के बच्चों को आमतौर पर यह दवाई दी जाती है, लेकिन अब सरकार ने इस पर बैन लगा दिया है। 4 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को डेक्सट्रोमेथॉर्फन हाइड्रोब्रोमाइड नाम की दवाई वाले सिरप भी दिए जाते हैं।

आमतौर पर ये दवाइयां पाउडर के फॉर्म में होती हैं इसलिए इनको घोलने के लिए एक सॉल्वेंट की जरूरत होती है. बच्चे कड़वी दवाई नहीं पीते इसलिए मीठा सोर्बिटॉल या गाढ़ा करने वाले ग्लिसरीन या ग्लिसेरॉल या प्रोपिलीन ग्लाइकॉल मिलाया जाता है। इससे दवाई गाढ़ी रहती है, लेकिन मुंह में नहीं चिपकती। जब सॉल्वेंट की जगह EG यानी एथिलीन ग्लाइकॉल या फिर DEG यानी डाई-एथिलीन ग्लाइकॉल का इस्तेमाल किया जाता है तो ये बच्चों के लिए जहर बन जाता है। EG और DEG रंगहीन और गंधहीन एल्कोहल हैं, जिनका इस्तेमाल इंडस्ट्री केमिकल की तरह पेंट, हाइड्रोलिक ब्रेक फ्लूड, स्याही, बॉल पॉइंट पेन वगैरह में होता है।

WHO के मानक के अनुसार दवाइयों में EG या DEG का इस्तेमाल 0.1% से ज्यादा नहीं होना चाहिए. दवाइयों में इनकी ज्यादा मात्रा में मौजूदगी जहरीली मानी जाती है। जब EG या DEG शरीर में जाते हैं, तो टॉक्सिक मेटाबोलाइट्स यानी जहरीले रसायन बनते हैं. जैसे- EG से ऑक्जैलिक एसिड और DEG से HEAA नाम का एसिड बनता है. इससे किडनी और तंत्रिका तंत्र को नुकसान होता। इसके अलावा ये केमिकल खून में ऑक्सीजन के फ्लो को रोकते हैं. इससे कोशिकाएं मरने लगती हैं।

कफ सिरप में DEG और EG जैसे जहरीले पदार्थ मध्य प्रदेश में जिस जहरीले कफ सिरप ने बच्चों की जान ली, उसे बनाने वाली श्रीसन फार्मास्यूटिकल को लेकर तमिलनाडु सरकार ने बताया है कि कफ सिरप में इस्तेमाल किया गया प्रोपीलीन ग्लाइकॉल फार्मा नहीं, इंडस्ट्रियल ग्रेड का था, जो दवा बनाने में बैन है। इंडस्ट्रियल ग्रेड प्रोपीलीन ग्लाइकॉल सस्ता पड़ता है, लेकिन इसमें जहरीले केमिकल होते हैं जो बच्चों के मामले में जानलेवा होते हैं। जिस सिरप से बच्चों की मौत हुई उसमें 48% से अधिक DEG मिला, जबकि ये 0.1 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए।

आज से 5 साल पहले जम्मू-कश्मीर के उधमपुर जिले में भी 12 बच्चों की मौत COLDBEST-PC कफ सिरप पीने से हुई थी. इसे हिमाचल प्रदेश की 'डिजिटल विजन फार्मा' कंपनी ने बनाया था।इसमें 34% DEG पाया गया था. इसके बाद भी सरकारों की नींद नहीं टूटी और मध्य प्रदेश से राजस्थान तक दर्जनों माता-पिता ने अपने मासूमों को खो दिया।

सरकार की कार्रवाई

मध्य प्रदेश सरकार ने इस मामले में 3 अधिकारियों को निलंबित किया और ड्रग कंट्रोलर को हटाया। इसके अलावा, कई राज्यों ने कफ सिरप की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। केंद्र सरकार ने भी दवा निर्माण इकाइयों की जांच के निर्देश दिए हैं।

- मध्य प्रदेश: कोल्ड्रिफ और नेस्ट्रो डीएस पर प्रतिबंध लगाया गया है।

- राजस्थान: कोल्ड्रिफ और अन्य कफ सिरप पर प्रतिबंध लगाया गया है।

- उत्तर प्रदेश: कफ सिरप पर प्रतिबंध लगाया गया है।

- पंजाब: कोल्ड्रिफ कफ सिरप पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है।

- केरल: कफ सिरप पर प्रतिबंध लगाया गया है।

- तमिलनाडु: कफ सिरप पर प्रतिबंध लगाया गया है।

- महाराष्ट्र: कफ सिरप के संबंध में अलर्ट जारी किया गया है।

- छत्तीसगढ़: 2 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए कफ सिरप के उपयोग पर सख्त प्रतिबंध लगाया गया है।

- उत्तराखंड: प्रतिबंधित कफ सिरप और संदिग्ध औषधियों के खिलाफ सघन अभियान चलाया जा रहा है, और 2 साल से कम उम्र के बच्चों को बिना डॉक्टर की सलाह के कफ सिरप देने पर रोक लगाई गई है।

- झारखंड: कोल्ड्रिफ, रेपिफ्रेश और रिलीफ नामक कफ सिरप पर प्रतिबंध लगाया गया है।

कफ सिरप कांड एक गंभीर मुद्दा है, जिसने देशभर में हड़कंप मचा दिया है। सरकार और दवा निर्माण इकाइयों को मिलकर इस मामले में कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों। 

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